एकबार ठाकुर जी का एक बहुत ही प्यारा भक्त था। वह रोज इमली के पेड़ के नीचे बैठकर ठाकुर जी का भजन कीर्तन किया करता था। उसी रास्ते से एक दिन नारद जी जा रहे थे। नारद जी उस भक्त को देखकर पूछते है- क्या तुम यही रोज बैठकर ठाकुर जी का भजन करते हो।
भक्त ने कहा- हाँ, पिछले 30 सालों से हम यही बैठकर ठाकुर जी भजन कर रहे है।
नारद जी बहुत प्रसन्न हुए और कहा अभी हम भगवान से मिलने जा रहे है। अगर तुम कुछ संदेश देना चाहते हो तो हमसे कह दो।
भक्त ने कहा- बस एक प्रश्न है मेरा की मुझे भगवान आकार दर्शन कब देंगे।
नारद जी ने कहा- ठीक है। और वो भगवान के पास चले जाते है। नारद जी भगवान के पास पहुँचकर भगवान को उस भक्त का प्रश्न बताते है। तब
भगवान ने कहा- उस इमली के पेड़ में जितने पत्ते है हम उतने ही वर्ष के बाद उस भक्त को दर्शन देने जायेंगे। यह सुनकर नारद जी उदास हो जाते है और वे फिर नीचे चले आते है। नारद जी को देखकर
भक्त ने कहा- मेरा प्रश्न पूछा क्या ?
नारद जी ने कहा- छोड़ो वो बात, कभी और करेंगे।
भक्त कहता है- ऐसे कैसे छोड़ो, मैंने भगवान से वो प्रश्न किया है, मुझे उसका उत्तर चाहिए।
नारद जी ने कहा- भगवान का जबाब सुनकर तुम उदास हो जाओगे।
भक्त ने कहा- नहीं, हम उदास नहीं होएंगे, आप बस हमे उत्तर बता दीजिए।
नारद जी ने कहा- भगवान जी ने कहा है कि इस इमली के पेड़ में जितने पत्ते है हम उतने ही वर्ष के बाद तुमसे मिलने आयेंगे।
भक्त वापस पूछता है- भगवान ने ये बात खुद अपने मुख से कही है।ननारद जी ने कहा- हाँ।
भगवान ने हमसे मिलने के लिए ये उत्तर दिया है। हाँ भाई, भगवान ने यह बात खुद कही है। वो भक्त भगवान के इस उत्तर को सुनकर इतना खुश होता है कि वो नाचने लगता है और भजन करने लगता है। वह भक्त और भी जोर शोर से भगवान का भजन करने लगता है।
ऐसा करते करते अचानक वहाँ भगवान प्रकट हो जाते है। उसे दर्शन के लिए। नारद जी को यह बात अच्छी नहीं लगी।
नारद जी ने भगवान ने कहा- आपने तो कहा था कि पेड़ में जितने पत्ते है उतने वर्षो के बाद दर्शन देने जायेंगे। जब इतनी ही जल्दी दर्शन देनी थी तो मुझसे झूठ क्यों बोलवाई। हमें क्यों झूठा बनाया। हमसे क्यों झूठ बात कहवाई।
भगवान ने कहा- मैंने झूठ बात नहीं कहलवाई है। जिस गति से जिस तरीके से उस भक्त ने भक्ति कर रहा था उस गति से तो मैं उतने ही वर्षो के बाद दर्शन देने आता। लेकिन जैसे ही उस भक्त को अपने प्रश्न का उत्तर मिलता है फिर उसने जिस गति से मेरी भक्ति की है हमे उसी गति से उसे दर्शन देने आना पड़ा।
इस कहानी से हमने यह सीखा की- जिस प्रकार हमलोग मेहनत करेंगे उसी प्रकार हमलोगों को सफलता मिलेगी। यानि जितनी ज्यादा मेहनत करेंगे उतनी ही जल्दी हमलोगों को सफलता मिलेगी।
भक्त ने कहा- हाँ, पिछले 30 सालों से हम यही बैठकर ठाकुर जी भजन कर रहे है।
नारद जी बहुत प्रसन्न हुए और कहा अभी हम भगवान से मिलने जा रहे है। अगर तुम कुछ संदेश देना चाहते हो तो हमसे कह दो।
भक्त ने कहा- बस एक प्रश्न है मेरा की मुझे भगवान आकार दर्शन कब देंगे।
नारद जी ने कहा- ठीक है। और वो भगवान के पास चले जाते है। नारद जी भगवान के पास पहुँचकर भगवान को उस भक्त का प्रश्न बताते है। तब
भगवान ने कहा- उस इमली के पेड़ में जितने पत्ते है हम उतने ही वर्ष के बाद उस भक्त को दर्शन देने जायेंगे। यह सुनकर नारद जी उदास हो जाते है और वे फिर नीचे चले आते है। नारद जी को देखकर
भक्त ने कहा- मेरा प्रश्न पूछा क्या ?
नारद जी ने कहा- छोड़ो वो बात, कभी और करेंगे।
भक्त कहता है- ऐसे कैसे छोड़ो, मैंने भगवान से वो प्रश्न किया है, मुझे उसका उत्तर चाहिए।
नारद जी ने कहा- भगवान का जबाब सुनकर तुम उदास हो जाओगे।
भक्त ने कहा- नहीं, हम उदास नहीं होएंगे, आप बस हमे उत्तर बता दीजिए।
नारद जी ने कहा- भगवान जी ने कहा है कि इस इमली के पेड़ में जितने पत्ते है हम उतने ही वर्ष के बाद तुमसे मिलने आयेंगे।
भक्त वापस पूछता है- भगवान ने ये बात खुद अपने मुख से कही है।ननारद जी ने कहा- हाँ।
भगवान ने हमसे मिलने के लिए ये उत्तर दिया है। हाँ भाई, भगवान ने यह बात खुद कही है। वो भक्त भगवान के इस उत्तर को सुनकर इतना खुश होता है कि वो नाचने लगता है और भजन करने लगता है। वह भक्त और भी जोर शोर से भगवान का भजन करने लगता है।
ऐसा करते करते अचानक वहाँ भगवान प्रकट हो जाते है। उसे दर्शन के लिए। नारद जी को यह बात अच्छी नहीं लगी।
नारद जी ने भगवान ने कहा- आपने तो कहा था कि पेड़ में जितने पत्ते है उतने वर्षो के बाद दर्शन देने जायेंगे। जब इतनी ही जल्दी दर्शन देनी थी तो मुझसे झूठ क्यों बोलवाई। हमें क्यों झूठा बनाया। हमसे क्यों झूठ बात कहवाई।
भगवान ने कहा- मैंने झूठ बात नहीं कहलवाई है। जिस गति से जिस तरीके से उस भक्त ने भक्ति कर रहा था उस गति से तो मैं उतने ही वर्षो के बाद दर्शन देने आता। लेकिन जैसे ही उस भक्त को अपने प्रश्न का उत्तर मिलता है फिर उसने जिस गति से मेरी भक्ति की है हमे उसी गति से उसे दर्शन देने आना पड़ा।
इस कहानी से क्या सीखा
इस कहानी से हमने यह सीखा की- जिस प्रकार हमलोग मेहनत करेंगे उसी प्रकार हमलोगों को सफलता मिलेगी। यानि जितनी ज्यादा मेहनत करेंगे उतनी ही जल्दी हमलोगों को सफलता मिलेगी।
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