एक दिन इस बात पर विवाद खड़ा हुआ की सफलता का श्रेय किसे दिया जाना चाहिए। तभी संकल्प ने अपने को, बल ने अपने को और बुद्धि ने अपने को बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण बताया। तीनों ( संकल्प, बल और बुद्धि ) अपने-अपने बात पर अड़े हुए था। जब इस विवाद का कोई निष्कर्ष नहीं निकला तो अंत में तय हुआ की विवेक को पंच बनाकर इस झगड़े का फैसला करवाया जाए। विवेक इस झगड़े का फैसला करने के लिए तैयार हो गया। विवेक ने इस झगड़े का फैसला किस प्रकार से किया इसे हमलोग नीचे विस्तार से पढ़ेंगे -
विवेक ने एक हाथ में लोहे की टेढ़ी कील ली और दूसरे हाथ में हथौड़ा। तीनो को ( संकल्प, बल और बुद्धि ) अपने साथ लेकर चल पड़ा। चलते-चलते वे चारों एक ऐसी जगह पहुँचे जहाँ एक छोटा सा बालक खेल रहा था। विवेक ने उस बालक से कहा, बेटा इस टेढ़ी कील को अगर तुम इस हथौड़े से ठोककर सीधा कर दो तो हम तुम्हें भरपेट मिठाई खिलायेंगे और खिलौने से भरा एक पिटारा भी देंगे। मिठाई और खिलौने की बात सुनकर बालक की आँखे चमक उठी। उसने कहा, अरे इसमें कौन सी बड़ी बात है, इसे तो मैं यूँ ही सीधा कर दूँगा लेकिन मिठाई और खिलौने कौन देगा। विवेक कहता है, मिठाई और खिलौने मैं तुम्हे जरूर दूँगा ये मेरा वादा है।
अब वो बालक बड़ी आशा और उत्साह से प्रयत्न करने लगा। पर कील को सीधा कर पाना दूर उस बालक से हथौड़ा तक न उठ सका। छोटा होने के कारण उसके हाथों में भारी औजार उठाने लायक बल नही था। बहुत प्रयत्न करने के बाद उस बालक को सफलता न मिली तो वह छिन्न होकर चला गया। इससे उनलोगों ने निष्कर्ष निकाला की 'सफलता प्राप्त करने के लिए अकेले संकल्प का होना ही पर्याप्त नहीं है।'
वे चारों वहां से फिर आगे बढ़े। जैसे ही वे थोड़ी दूर जाते है तो उन्हें एक श्रमिक दिखाई देता है। वे चारो उन श्रमिक के पास पहुँचता है तो देखता है कि यह श्रमिक खर्राटे लेता हुआ सो रहा है। विवेक ने उसे झकझोर कर उठाया और कहा, भैया अरे ओ भैया इस कील को हथौड़े मारकर सीधा कर दोगे क्या ? आँखे मलते हुए श्रमिक ने कहा, अरे कौन है, हमें सोने दो भाई, क्यों मेरे आराम में दाखिल डाल रहे हो। जाओ जाओ किसी और से करवा लो, मुझे सोने दो। विवेक ने कहा, अगर तुमने कील सीधी कर दी तो मैं तुम्हे 10 रूपये दूँगा। क्या यार कहाँ कहाँ से चल आते हो। लाओ कहाँ है तुम्हारी कील।
वो निंदी आँखों से अनमना सा होकर श्रमिक ने तो कुछ प्रयत्न किया मगर वो नींद की खुमारी में बना रहा। उसने हथौड़ा एक ओर रख दिया और वही लेट कर फिर से खर्राटे लेने लगा। वे चारो अपने कील और हथौड़े को लेकर यहाँ से भी आगे बढ़ गए और निष्कर्ष निकाला की, सफलता का श्रेय प्राप्त करने के लिए अकेला बल भी काफी नहीं है।' सामर्थ्य होते भी संकल्प के न होने से श्रमिक जब कील को सीधा न कर सका तो इसके शिवाय कहा कि क्या जाए।
विवेक को सफलता का रहस्य समझ में आ गया था इसलिए उसने उन तीनों ( संकल्प, बल और बुद्धि ) से कहा- अब हमें लौट चलना चाहिए क्योंकि हम जिस बात को जानना चाहते थे वो मालूम पड़ गयी है।
संकल्प, बल और बुद्धि एकसाथ मिलकर ही सफलता का श्रेय प्राप्त कर सकते है। एकांकी रूप में तीनों अधूरे और अपूर्ण है।
अगर कोई इंसान किसी काम को करने में संकल्प, बल और बुद्धि तीनों का इस्तेमाल करता है तभी वह अपने सफलता को प्राप्त कर सकता है। जैसे की ऊपर की कहानी में हुआ। अगर आपके पास कोई और सूत्र हो सफलता पाने के लिए तो आप नीचे कमेंट में लिखना न भूले। धन्यवाद।
विवेक ने एक हाथ में लोहे की टेढ़ी कील ली और दूसरे हाथ में हथौड़ा। तीनो को ( संकल्प, बल और बुद्धि ) अपने साथ लेकर चल पड़ा। चलते-चलते वे चारों एक ऐसी जगह पहुँचे जहाँ एक छोटा सा बालक खेल रहा था। विवेक ने उस बालक से कहा, बेटा इस टेढ़ी कील को अगर तुम इस हथौड़े से ठोककर सीधा कर दो तो हम तुम्हें भरपेट मिठाई खिलायेंगे और खिलौने से भरा एक पिटारा भी देंगे। मिठाई और खिलौने की बात सुनकर बालक की आँखे चमक उठी। उसने कहा, अरे इसमें कौन सी बड़ी बात है, इसे तो मैं यूँ ही सीधा कर दूँगा लेकिन मिठाई और खिलौने कौन देगा। विवेक कहता है, मिठाई और खिलौने मैं तुम्हे जरूर दूँगा ये मेरा वादा है।
अब वो बालक बड़ी आशा और उत्साह से प्रयत्न करने लगा। पर कील को सीधा कर पाना दूर उस बालक से हथौड़ा तक न उठ सका। छोटा होने के कारण उसके हाथों में भारी औजार उठाने लायक बल नही था। बहुत प्रयत्न करने के बाद उस बालक को सफलता न मिली तो वह छिन्न होकर चला गया। इससे उनलोगों ने निष्कर्ष निकाला की 'सफलता प्राप्त करने के लिए अकेले संकल्प का होना ही पर्याप्त नहीं है।'
वे चारों वहां से फिर आगे बढ़े। जैसे ही वे थोड़ी दूर जाते है तो उन्हें एक श्रमिक दिखाई देता है। वे चारो उन श्रमिक के पास पहुँचता है तो देखता है कि यह श्रमिक खर्राटे लेता हुआ सो रहा है। विवेक ने उसे झकझोर कर उठाया और कहा, भैया अरे ओ भैया इस कील को हथौड़े मारकर सीधा कर दोगे क्या ? आँखे मलते हुए श्रमिक ने कहा, अरे कौन है, हमें सोने दो भाई, क्यों मेरे आराम में दाखिल डाल रहे हो। जाओ जाओ किसी और से करवा लो, मुझे सोने दो। विवेक ने कहा, अगर तुमने कील सीधी कर दी तो मैं तुम्हे 10 रूपये दूँगा। क्या यार कहाँ कहाँ से चल आते हो। लाओ कहाँ है तुम्हारी कील।
वो निंदी आँखों से अनमना सा होकर श्रमिक ने तो कुछ प्रयत्न किया मगर वो नींद की खुमारी में बना रहा। उसने हथौड़ा एक ओर रख दिया और वही लेट कर फिर से खर्राटे लेने लगा। वे चारो अपने कील और हथौड़े को लेकर यहाँ से भी आगे बढ़ गए और निष्कर्ष निकाला की, सफलता का श्रेय प्राप्त करने के लिए अकेला बल भी काफी नहीं है।' सामर्थ्य होते भी संकल्प के न होने से श्रमिक जब कील को सीधा न कर सका तो इसके शिवाय कहा कि क्या जाए।
विवेक को सफलता का रहस्य समझ में आ गया था इसलिए उसने उन तीनों ( संकल्प, बल और बुद्धि ) से कहा- अब हमें लौट चलना चाहिए क्योंकि हम जिस बात को जानना चाहते थे वो मालूम पड़ गयी है।
संकल्प, बल और बुद्धि एकसाथ मिलकर ही सफलता का श्रेय प्राप्त कर सकते है। एकांकी रूप में तीनों अधूरे और अपूर्ण है।
अगर कोई इंसान किसी काम को करने में संकल्प, बल और बुद्धि तीनों का इस्तेमाल करता है तभी वह अपने सफलता को प्राप्त कर सकता है। जैसे की ऊपर की कहानी में हुआ। अगर आपके पास कोई और सूत्र हो सफलता पाने के लिए तो आप नीचे कमेंट में लिखना न भूले। धन्यवाद।
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