आज मैं आप सभी के सामने भारत के प्रसिद्ध संत नामदेव की बहुत हु लोकप्रिय कहानी को लिख रहा हूँ जिसे पढ़कर आपमें एक बदलाव जरूर आयेगी। ये बदलाव क्या होगा, कैसा होगा इस कहानी को पढ़कर आप खुद जान जायेंगे।
पंढरपुर नामक जगह पर कार्तिक यात्रा का मेला लगा हुआ था। इस मेले में अनेकों साधु संत पहुँचे हुए थे। एकादशी का निर्जल उपवास कर सभी साधु संत द्वादसी के दिन पारण करने के लिए उतावले हो रहे थे। कोई आटा गूँथ रहा था तो कोई रोटी बना रहा था तो कोई रसोई बनाकर भगवान को भोग भी लगा रहा था। इसी बीच एक काली कुत्ता वहाँ आ पहुंचा। साधुओं के एकादशी का असर उस कुत्ते पर भी दिख रहा था क्योंकि पिछले दिन कुछ न मिलने से वह भूखा कुत्ता किसी के आटे में मुँह डालता तो किसी के पकी हुई रोटी को छूता तो किसी के पड़ोसी हुई थाली में मुँह डाल देता। हर एक साधु उसे मारता, ललकारता और भगाता था। कोई कहता छी-छी ये कुत्ता हमारा अन्न छू गया, अब ये खाने योग्य नहीं रहा, अपवित्र हो गया। दूसरा महात्मा कहते, अरे ये तो काला कुत्ता है, धर्मशास्त्रों में पढ़ा है कि इसकी छूत नहीं लगती।
चारों तरफ से तिरस्कृत कुत्ता अब नामदेव के पास आया और उनकी रोटी लेकर भाग गया। यह देखकर नामदेव अपने पास रखे घी की कटोरी लेकर उस कुत्ते के पीछे दौड़ पड़े और कहने लगे, अरे भाई रुको, सुखी रोटी मत खाओ पेट में दर्द होगा। मेरे पास घी है मैं इसमें रोटी को चुभोर देता हूँ फिर खाना। नामदेव रोटी में घी चुभोरकर अपने हाथों से उस कुत्ते को रोटी खिलाने लगे। सभी साधु महात्मा नामदेव की इस करणी को देखकर हँसने लगे और कहने लगे- हाँ-हाँ नामदेव पागल हो गया है। सही कर रहे हो तुम नामदेव पागल हो गया है। उन सभी साधुओं के बातों को सुनकर नामदेव ने उनकी बातों का कोई प्रवाह नहीं किये।
अंत में जब उस कुत्ते का पेट भर गया तो उसने अपना वेष बदलकर नामदेव से मनुष्य की वाणी में कहा- नामदेव, सचमुच तुम्हारी दृष्टि सभी प्राणियों में एकसमान है। यहाँ पर आये हुए इन सभी महात्माओं की विषम दृष्टि अभी तक नहीं मिटी है पर तुमने अपने सम दृष्टि से मेरे परीक्षा को पास कर लिया नामदेव। तुम धन्य हो नामदेव, तुम धन्य हो।
ये बातें कहकर वह कुत्ता अपने वेष सहित अंतरधाम हो गया। वहाँ पर उपस्थित सभी साधु महात्मा नामदेव के भाग्य की सराहना करने लगे। वे सभी पछताने भी लगे क्योंकि उन्हें भगवान को खिलाने का अवसर मिला था लेकिन वे लोग चुक गए। तभी से सभी साधु महात्मा उनके बातों पर ध्यान देने लगे। तो दोस्तों बताओ की आपको इस कहानी से क्या शिक्षा मिली ?
इस कहानी से हमे यह सिख मिलती है कि ईश्वर सर्वत्र ( सभी जगह ) है। हर दिशा में है, हर प्राणी में है और कण-कण में है। हमारी नजरों का ही ये खोट है कि हम उन्हें कभी देख नहीं पाते है। जब हम संत नामदेव की तरह अपने अहम् से ऊपर उठते है और हमारे चरित्र में स्वाभाविक सरलता आ जाती है तब हमें चारो और ईश्वर नजर आते है।
आपको ये कहानी कैसी लगी हमे कमेन्ट में लिखकर जरूर बताये। साथ ही इस कहानी को अपने सभी दोस्तों के साथ शेयर भी करे।
पंढरपुर नामक जगह पर कार्तिक यात्रा का मेला लगा हुआ था। इस मेले में अनेकों साधु संत पहुँचे हुए थे। एकादशी का निर्जल उपवास कर सभी साधु संत द्वादसी के दिन पारण करने के लिए उतावले हो रहे थे। कोई आटा गूँथ रहा था तो कोई रोटी बना रहा था तो कोई रसोई बनाकर भगवान को भोग भी लगा रहा था। इसी बीच एक काली कुत्ता वहाँ आ पहुंचा। साधुओं के एकादशी का असर उस कुत्ते पर भी दिख रहा था क्योंकि पिछले दिन कुछ न मिलने से वह भूखा कुत्ता किसी के आटे में मुँह डालता तो किसी के पकी हुई रोटी को छूता तो किसी के पड़ोसी हुई थाली में मुँह डाल देता। हर एक साधु उसे मारता, ललकारता और भगाता था। कोई कहता छी-छी ये कुत्ता हमारा अन्न छू गया, अब ये खाने योग्य नहीं रहा, अपवित्र हो गया। दूसरा महात्मा कहते, अरे ये तो काला कुत्ता है, धर्मशास्त्रों में पढ़ा है कि इसकी छूत नहीं लगती।
चारों तरफ से तिरस्कृत कुत्ता अब नामदेव के पास आया और उनकी रोटी लेकर भाग गया। यह देखकर नामदेव अपने पास रखे घी की कटोरी लेकर उस कुत्ते के पीछे दौड़ पड़े और कहने लगे, अरे भाई रुको, सुखी रोटी मत खाओ पेट में दर्द होगा। मेरे पास घी है मैं इसमें रोटी को चुभोर देता हूँ फिर खाना। नामदेव रोटी में घी चुभोरकर अपने हाथों से उस कुत्ते को रोटी खिलाने लगे। सभी साधु महात्मा नामदेव की इस करणी को देखकर हँसने लगे और कहने लगे- हाँ-हाँ नामदेव पागल हो गया है। सही कर रहे हो तुम नामदेव पागल हो गया है। उन सभी साधुओं के बातों को सुनकर नामदेव ने उनकी बातों का कोई प्रवाह नहीं किये।
अंत में जब उस कुत्ते का पेट भर गया तो उसने अपना वेष बदलकर नामदेव से मनुष्य की वाणी में कहा- नामदेव, सचमुच तुम्हारी दृष्टि सभी प्राणियों में एकसमान है। यहाँ पर आये हुए इन सभी महात्माओं की विषम दृष्टि अभी तक नहीं मिटी है पर तुमने अपने सम दृष्टि से मेरे परीक्षा को पास कर लिया नामदेव। तुम धन्य हो नामदेव, तुम धन्य हो।
ये बातें कहकर वह कुत्ता अपने वेष सहित अंतरधाम हो गया। वहाँ पर उपस्थित सभी साधु महात्मा नामदेव के भाग्य की सराहना करने लगे। वे सभी पछताने भी लगे क्योंकि उन्हें भगवान को खिलाने का अवसर मिला था लेकिन वे लोग चुक गए। तभी से सभी साधु महात्मा उनके बातों पर ध्यान देने लगे। तो दोस्तों बताओ की आपको इस कहानी से क्या शिक्षा मिली ?
इस कहानी से हमे यह सिख मिलती है कि ईश्वर सर्वत्र ( सभी जगह ) है। हर दिशा में है, हर प्राणी में है और कण-कण में है। हमारी नजरों का ही ये खोट है कि हम उन्हें कभी देख नहीं पाते है। जब हम संत नामदेव की तरह अपने अहम् से ऊपर उठते है और हमारे चरित्र में स्वाभाविक सरलता आ जाती है तब हमें चारो और ईश्वर नजर आते है।
आपको ये कहानी कैसी लगी हमे कमेन्ट में लिखकर जरूर बताये। साथ ही इस कहानी को अपने सभी दोस्तों के साथ शेयर भी करे।
Post a Comment